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हमारी बेटियां

अब बात किदवईनगर की एच ब्लॉक में रहने वाली निधि की. सेंट मैरीज कॉन्वेंट की स्टूडेंट के तौर पर 10वीं में 82 परसेंट, 12वीं में 76 परसेंट पाए. फिर इयर 2004 में कानपुर यूनिवर्सिटी से एडवरटाइजिंग एंड मार्केटिंग सब्जेक्ट में बीए किया. ओवर ऑल बेस्ट ऐकेडमिक परफॉर्मेस के लिए ग्रुप में गवर्नर के हाथों गोल्ड मेडल पाया. गुलमोहर पब्लिक स्कूल में लगातार दो साल बेस्ट टीचर का खिताब जीता. फिर एनीमेशन की पढ़ाई के लिए मुंबई गई. वहां एक सहेली के साथ सीरियल के सेट पर पहुंची तो डायरेक्टर-प्रोड्यूसर एकता कपूर और शोभा कपूर को ऐसी भा गई कि एक्टिंग कासफर शुरू हो गया. जो मायका (जी टीवी), काजल (स्टार), कस्तूरी (स्टार), डोली सजा के, करम अपना.चैंपियन चालबाज आदि दर्जन भर सीरियल्स करने के बाद भी जारी है.

12वीं के आईसीएसई बोर्ड एग्जाम्स में 97.25 परसेंट नंबर पाकर साइंस में सिटी टॉपर बनने के बावजूद मैं तो ज्यादा पढ़ी ही नहीं कहकर सबको चौंका देने वाली सेंट मैरीज कॉन्वेंट स्कूल की स्टूडेंट, इति जैन के फादर डॉ. एके जैन बचपन से ही बेटी को लेकर प्राउड फील करते हैं. इति के अनुसार पापा एक टीचर और अच्छे मैनेजर हैं. इति की बड़ी बहन अंकिता भी इंजीनियरिंग कर रही है. इति के अनुसार पापा और मम्मी कुसुम जैन ने बिना प्रेशर अच्छा परफॉर्म करना सिखाया.

एक ऐसी बेटी, जिसकी मां ही उसकी सबसे बड़ी इंस्पीरेशन और वंडरफुल फ्रेंड थी. मां की बदौलत आज वो इस मेल डॉमिनेटेड सोसायटी में भी ऐसे पद पर पहुंचने में कामयाब हुई कि उनकी मां को अपनी बेटी पर गर्व है. ये डॉटर है सिटी में एड लैब्स (रेव थ्री) में सीनियर असिस्टेंट मैनेजर की पोस्ट पर काम कर रहीं श्वेता सेठी. तीन भाई बहनों में सबसे छोटी श्वेता के यहां तक पहुंचने का रास्ता मुश्किलों भरा रहा है. वो कहती है मां पूजा सेठी गूबा गार्डेन में एक छोटा सा स्कूल चलाती हैं. 2002 में पिता की मौत के बाद अपने करियर और फर्दर एजूकेशन का बोझ खुद श्वेता पर ही आ गया. कानपुर में एक मार्केटिंग कंपनी में तीन महीने सेल्स की जॉब की तो कंपनी बिना वेतन दिए भाग गई. उस समय जब कॉल सेंटर की जॉब को अच्छा नहीं माना जाता था, फिर भी दिल्ली जाकर कॉल सेंटर ट्रेनिंग ज्वाइन की. इसके बाद वहीं पर 8 हजार रुपए पर टेलीकॉलर की पहली जॉब की. उसी सैलरी में घर पैसे भेजने के अलावा रेंट और दिल्ली में रहने-खाने के अरेंजमेंट्स भी देखने थे. वहीं एक 18-19 साल की लड़की का एक बड़े अनजान शहर में अकेले रहना कितना मुश्किल है, यह तब समझ में आया जब परेशानियों के कारण कई घर बदलने पड़े. पल-पल यही लगता था कि अब बहुत हुआ, घर भाग चलूं. पर मेरी मां ने एक बेहतरीन दोस्त की तरह सपोर्ट किया. मैं दिल्ली में टिक पाई. बहन की शादी करने घर आई, फिर लखनऊ से एमबीए किया. वापस दिल्ली में अच्छे पैकेज पर बड़ी कंपनी में जॉब मिली. आज 4 लाख रुपए पर एनम से ज्यादा के पैकेज पर अपने ही शहर में जॉब कर रही हूं. उनकी मां भावुक होकर बस इतना ही कह पाती हैं कि मुझे अपनी बेटी पर गर्व है.

मानवती आर्या (फ्रीडम फाइटर), डॉ. लक्ष्मी सहगल (आजाद हिंद फौज), सुभाषिनी अली (डॉ. लक्ष्मी सहगल की बेटी एवं पूर्व सांसद), डॉ. सुशीला रोहतगी (पूर्व फाइनेंस मिनिस्टर भारत सरकार), नीतू डेविड (हाईएस्ट विकेट टेकर इन इंटरनेशनल वीमन क्रिकेट), डॉ. आरती लालचंदानी (कार्डियोलॉजिस्ट, सोशलिस्ट), डॉ. मधु लूंबा (गायनकोलॉजिस्ट, प्रदेश का पहला टेस्ट ट्यूब बेबी इन्हीं की देखरेख में), आशा रानी राय (प्रिंसिपल सरस्वती, वेदा ज्ञानी), हेमलता स्वरूप (कानपुर यूनिवर्सिटी वीसी), सिस्टर नूरीन (मरियमपुर प्रिंसिपल, सोशल वर्कर), सरला सिंह (सिटी की पहली महिला मेयर), अंकिता मिश्रा (सिंगर, इंडियन आयडल फाइनलिस्ट), विनती सिंह (सिंगर, वॉयस ऑफ इंडिया).
यह सामग्री http://www.inext.co.in/epaper से ली हैं।

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